Thursday, August 11, 2016

साउंड प्रूफ लेबर रूम्स

सिस्टर ऎडमिशन पेपर्स तैयार करवाओ , इमिजिऎट एन एस टी.. ऎनीमा..क्लीनिंग.."

पर डक्टर मुझे डर लग रहा है मुझे लगता है ये फाल्स पेन हैं मैं मैं..." नहीं भई  नहीं ..ये तो बहुत अच्छी दरद हैं..डाक़्टर अपने साउथ इंडियन लहजे में बोली .'फिफ्टीन मिनट्स के इंटवेल पर पेन हो रही हैं अब ऎर्‍डमिट होना होगा बच्ची.."

दया के चेहरे पर अनजाना कहर टूटता दिखाई देता है उसकी सास पूछती है 'अरी बता तो दर्द कमर से उठ रहा है या पेट से ..कमर से उठता है तो लडका होता है ..बता ?" नहीं मुझे नहीं पता मुझे कुछ नहीं पता मुझे बचाओ कोई बस .." सास का चेहरा निर्दयी हो उठता है "ऎरी तू अनोखी नहीं जनने जा रही है बच्चा सारी दुनिया जनती है". पास से गुज़रती सिस्टर कहती है नहीं दुनिया का हर डिलेवरी केस अलग होता है माता जी ,अब चलो तुम व्हील चेयर पर बैठो. "

डिलीवरी रूम  की ट्रेनी यंग डाक्टर नीचे के हिस्से में जाँचं पड़ताल में लगी थी एक के चेहरे पर मरीज के दर्द से पैदा हुआ दर्द था तो दूसरी अपने खून लगे कोट से बिना घिन्नाए दया के केस को पढ रही थी -" सुनो दर्द बढाने की दवाई डाल दी है जितनी जल्दी अच्छे दर्द होंगे उतनी जल्दी आजाद हो जाओगी .." दया बिना हिले डुले लेटी है मुहं से बीच बीच में कराह निकलती है नजर दौडाती है लेबर रूम में ! पेट फुलाए पडी कराहती रोती औरतें ही औरतें ! दर्द का इंजार करती , दर्द के बढने की दुआ मनाती दाँत भींचती औरतें ही औरतें ! ...................दर्द बहुत जरूरी है ! दर्द के बिना यहीं पडी रहोगी पेट काट्ना पडेगा तो ज्यादा तकलीफ होगी ! दया चिल्लाती है हिस्टीरिक होकर ..मुझे जाने दो मुझे छोड दो यहां की चीखों से दिल दहलता है इन औरतों के दर्द में विकृत हो गए चेहरों  को देखने से मितली आ रही  है ............देखो ये साउंड फूफ कमरे हैं यहां की दीवारें चीखों को बाहर नहीं जाने देतीं ......तुम भी दर्द के और बढने पर चीखोगी ....शायद कोई नर्स बोली थी ! उठो घूम लो पडी रहने से दर्द जमेगा ..."मैं नहीं खड़ी हो सकती ....टांगे कांप रही हैं मेरे पति को बुलाओ..."यहां किसी की एंट्री एलाउड नहीं है !"नर्स उदासीन भाव से जवाब दे रही थी !


दया को याद आता है बॉस का व्यंग्य से भरा चेहरा ! प्रेगनेंनसी की बात सुनते ही बोला था "यू टिपिकल इंडियन लेडीज..जॉब मिलते ही मैरिज, मैरिज होते ही प्रेगनेंनसी...कैरियर स्टेगनेंट हो जाएगा तुम्हारा समझी ...प्रीकाशन नहीं ले सकती थी ?..."  दया पानी पनी चिल्ल्लाती है दर्द उसे जकड रहा है बेड पैन हाथ में लिए पास से जाती सफाई कर्मचारी उसे पानी देती है ! दया झिझकती है पर फिर लपककर पी जाती है "थें..क्स..आह आह ..........अब कितनी देर और.....दर्द बेकाबू ....हो रहा है ... डाक्टर को भेजो ...वक्त क्या हु...आ है ?  मुझे पेनलेस डिलीव..री चाहिए ............."सांस फूल रही थी दया की मुट्ठियाँ भिंच रही थीं! पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था !मेरा हाथ थाम ले एक बार वह ..देखे मेरा हाल कमर से ऊपर उठे डेलीवरी गाउन में टांगे फैलाए पलंग के किनारों से भिडते मुंह सूख रहा है.... सिस्टर सिस्टर......! डाक्टर लोबो आती हैं बहुत सामान्य भाव लिए आवाज में गुस्सा लिए कह रही हैं "क्यों तुम्हें चाहिए दरद दूर करने का टीका ...तुमहारी मां ने तुम्हें टीका लगवाकर पैदा किया था क्या ..वैसे भी सेफ कहां यह टीका सुन्न हो जाएगा रास्ता तो बच्चा अंदर रह सकता है और ऑपरेशन की जरूरत पड सकती है ..बच्चे को खतरा हो सकता है ..."

पता नहीं मुझे मैं इस समय मुझे अपनी जान जाती लग रही है मुझे या तो मार दो या मर जाने दो डाक्टर " दया के होंठ चिपकने लगते हैं आंखें आंसुओं का लगातार बहना बढ जाता है पेन का इंटरवेल अभी बढ रहा है ! मां तो कहती थी बस ज्यादा पता नहीं चलता तू बस बच्चे के बारे में सोचना ! सास कहती थी लडका होगा सोचना तो दरद महसूस नहीं होगा ! सब झूठ था मुझे यहां धकेलने का षडयंत्र.... ..बेड पर नजर जाती है खून ही खून कोई नर्स कह रही है  ओह ये मरीज 'शो' दिखा रही है  ! जूनियर डाक्टर देखती है  डाइलेशन फोर इंचिज हुआ है इस हिसाब से अभी फाइव ऑवर्स लगेंगे नर्स सुबह छ्ह के आसपास !  डाक्टर चली जाती हैं दया नर्स का हाथ पकडकर झिंझोड देती है  ....." नहीं इससे ज्यादा दर्द नहीं सह सकती मैं ...इससे ज्यादा दरद हो ही कैसे सकता है किसी को ....कोई बच ही कैसे सकता है इस दर्द के बाद ......बताओ बताओ " दया देखती है नर्स का चेहरा उसके दर्द से अछूता है ! दया चाहती है कि कोई तो उसे सहला कर कह दे कि हाँ मैं महसूस कर रहा हूँ तुम्हारा दर्द ...वह नर्स झाँक रही है भीतर और कह रही है  " देखो सिर दिख्नने लगा है डाइलेशन इंप्रूवड है साँसे लंबी लो ए चिल्लाओ मत इतना ..करते वक्त नहीं पता था कि जनते वक्त इतना दर्द होगा ? ! "

दया बीच में जाने हताश हो रही है या सो रही है ! इंद्रियाँ शिथिल पड़ रही हैं दिमाग अजीब अजीब चित्र बना रहा है ! गुस्सा ,नफरत, तडप ,प्रतिरोध के चित्र डाक्यूमेंट्री से शुरू होकर कोलाज में बदल जाने वाले चित्र ! एक में वह बच्ची है माँ के स्तन से चिपकी ,एक में वह जतिन की बाहों में है और जतिन कह रहे हैं कि वह उनके किए दुनिया की सबसे खूबसूरत उपलब्धि है ,एक में वह ग़िड़्गिड़ा रही है "जतिन तुम अपने परिवार को समझते हो मुझे भी समझो जरा ..." जतिन  जतिन जतिन......आओ मुझे तुम्हारी ज़रूरत है ...मैं लड़ते -लड़ते हार रही हूँ हर मोर्चे पर ..तुम साथ होकर भी साथ महसूस नहीं होते ...क्या प्यार का शादी में बदलना गलत रहा...मैं कब तक सहेजती रहूँ यह रिश्ता अकेले ......कहो ...कुछ तो कहो ......तुम्हारी चुप्पी.......! दया हाँफ रही है बाल नोंच रही है हाथ पटक रही है !

दया की चीखें बढ़ती जा रही हैं ! उसे लग रहा है ज़रूर उसका चिललाना इन दीवारों के बाहर खड़े जतिन को सुनाई दे रहा होगा ...वह रो रहा होगा मेरे लिए...वह दीवार तोड़कर यहाँ आ जाना चाहता होगा वैसे ही जैसे मुझसे प्रेम विवाह के लिए वह एक बार सारे जमाने से लड़ गया था .....! डाक्टर डाक्टर भगदड़ मच जाती है रेस्ट रूम से डाक्टर भागती आती हैं स्ट्रेचर आ यहा है "हरि अप जल्दी डिलीवरी टेबल पर शिफ्ट करो ...रोको अभी जोर नहीं लगाओ साँस अंदर खींचो ..." दया की टाँगें खोलकर लटका दी जाती हैं वह जीवित और मृत के बीच की सी देख रही है "वे कह रही हैं "सुनो हाथ टाँगों पर लपेटकर छाती से टाँगें चिपकाकर जोर लगाओ ....रोको जब दर्द की लहर उठेगी तब लगाना खाली नहीं ...." दया गला फाडकर चिल्लाती है मम्मी  मम्मी मम्मी  ! सीनियर डाक्टर फटकार रही है ए मुंह बंद करो बच्चा नीचे से निकलेगा मुंह से नहीं ! मुंह भीचो ...' अचानक दर्द की तेज लहर उठती है दया का चेहरा और भी रौद्र हो जाता है ,वहां खडी सब औरतें समवेत स्वर में गाती हैं हाँ हाँ लगाओ लगाओ लगाओ लगाओ  बस ....हां लगाओ लगाओ लगओ लगाओ लगाओ.....ऊँचा रिवाज़िया पर भावहीन समवेत गायन... धान की कटाई के समय का सा.....लो यह आ गया बाहर लो देख लो क्या है फिर काटेंगे प्लेसेंटा को ...लो यह काट दी नाल वह पडी है ट्रे में देखो .....वे रूई ठूंस रहे हैं दया में ! अब कुछ बाहर नहीं आना चाहिए !कुछ भी नहीं ! वे कह रही हैं आफ्टर पेन्स आतें हैं पर तुम हिलो नहीं नहीं तो टेडी सिल जाएगी फिर रोओगी बैठकर तुम ..  .....दया देख रही है ट्रे में पडी गर्भनाल को सिलाई का धागा खाल में से निकलता साफ सुनाई दे रहा है बाकी की डाक्टर्स व नर्सें जा चुकी हैं दूसरे डेलीवरी टेबल पर!


 एक बेहोशी सी......दर्द की खुमारी सी दिमाग पर चढ रही है बच्चा लपेटा जा चुका है कपड़े में वह धीरे -धीरे कराह रही है उसे लग रहा है वह एक फिल्म देख रही है !
पूरी डूबकर ! दर्द के दरिया में डूबी वह कोई और दया है ! बहे चली जा रही है !
किनारे पर जतिन खडा है बच्चा हाथ में झुलाता बुला रहा है उसे-." लौट आओ दया वापिस देखो तुम्हारा बच्चा ...किनारे की ओर लौट आओ ....हाँ हाँ जोर लगाओ तुम्हें आता है जोर लगाना दया......
दया पानी को काटती चली आओ....
 और और और  जोर लगाओ दया.........!

46 comments:

  1. Graphic and real. In cultures like ours where father's are kept out of thus birthing process and senior women are often sceptical, medical staff rude, giving birth us real miracle.

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    1. थैंक्स पूजा जी ..बस प्रयास किया मैने ..

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  2. Upasanaji aur smitaji की वजह से आपका ये blog पढ़ने को मिला,, मुझे सचमुच नहीं पता ये इतना कष्टदायी होता है,, कमाल ये है की पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे मेरे सामने हो रहा हो ये सब,, हालांकि मेरी बेटी धनश्री (IVF Baby) के कारन हम उन चंद माता पिता में है,, जिनकी संतान ने जन्म लेते समय अपने माँ-बाप को सबसे कम कष्ट दिया हो,, नहीं तो मेरी पत्नी की डिलीवरी के समय कोई भी महिला मेरे साथ नहीं थी,, मेरी माँ भी नहीं,, जाने कैसे होता ये सब

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    1. अनिल जी आपने सराहा समझा .. शुक्रिया


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  3. इतना दर्द सहना होता है क्या !
    आपके शब्दों का अंदाज निराला है !

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    1. शुक्रिया मुकेश जी

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  4. बापरे!!! इतना दर्द ! जैसे पूरी तस्वीर सामने आ गयी।

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  5. bahut khoob blog ... next bhi likhe jayege hme ummid hai

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    1. शुक्रिया प्रवीन जी

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  6. रोंगटे खड़े हो गये।

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  7. सृष्टि का सृजन जननी ही करती है असाध्य कष्ट सह कर

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    1. जी ... शुक्रिया धीरू जी

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  8. जड़वत बैठा हूँ....

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    1. ..... मैं समझ सकती हूँ अनिल जी

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  9. अभी हम उस सुविधा और मानसिकता से वंचित हैं जब एक स्त्री का पार्टनर बच्चा जनते वक्त लेबर रूम में उस के साथ रह सके।

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  10. सृजन की पीड़ा को अभिव्यक्त करती सुंदर कथा।

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  11. दोनों बेटियों की डिलीवरी पर अंजू के साथ रहा और दोनों बार उसके बराबर दर्द महसूस करने की कोशीश की। लेकिन शारीरिक दर्द भोगना और मानसिक में बहुत फर्क होता है।

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  12. दोनों बेटियों की डिलीवरी पर अंजू के साथ रहा और दोनों बार उसके बराबर दर्द महसूस करने की कोशीश की। लेकिन शारीरिक दर्द भोगना और मानसिक में बहुत फर्क होता है।

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  13. अस्पतालों में तो नर्सें गंदी गालियां देकर प्रसूता को उत्तेजित करती हैं। बढिया पोस्ट।

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  14. अस्पतालों में तो नर्सें गंदी गालियां देकर प्रसूता को उत्तेजित करती हैं। बढिया पोस्ट।

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  15. सरकारी अस्पतालों में तो इस असह्य वेदना से चीखती, जीवन-मृत्यु से लड़ती तमाम दयाओं को नर्सों द्वारा थप्पड़ मारने तक की कथाएँ आयीं हैं लेबर रूम से बाहर... हर औरत एक बार फिर दर्द से साक्षात्कार करेगी इस कथा के बहाने ..👍

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  16. aap sabhi ko shukriya, ye jaankari dena ka, ke hamari maa ne kitne takleef sahe hoge hume iss duniya me laane se. M really thanku neelima mam

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  17. Spellbound... सिर्फ़ इतना की मैं आपकी लेखनी के साथ मैं अपने लेबर के हर क्षण को जी पा रही थी.सबकुछ कमोबेश ऐसा ही था सूकून बस इतना था कि मेरी माँ और पति दोनों लेबर रूम में मेरे सिरहाने ही खड़े थे

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    1. जी शालिनी । मुझे बस सच लिखना था ....

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    2. जी शालिनी । मुझे बस सच लिखना था ....

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  18. हाथ पैर सुन्न हो गए हैं पढ़ने के बाद.. डर सा महसूस हो रहा है..!!

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  19. उफ्फ! कुछ समझ नहीं आ रहा, मेरा दिमाग सन्न पड़ा है, कुछ कहा भी नहीं जा रहा

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    1. जी अथर । आपने दिल से पढ़ा होगा तभी ऐसा हुआ होगा

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    2. जी अथर । आपने दिल से पढ़ा होगा तभी ऐसा हुआ होगा

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  20. such bahoot panic hota hai aur hum pati kuch kar bhi nahi saktee lakin eesee 2nd life bhi bolteen hain ... Aur maa jab apne bachhe ki awaz sunti hai woh sukh woh santi shyad likha nahi ja sakta sirf mahsoos kiya ja sakta hai jaise ek pati es dard ko mahsoos karta hai aur bebas hota hai.. maa.bahan, patni, beti anmol resteen .. hote hain ek pariwar main shukhi wahi jo dusre ke dard ko mahsoos karee shandaar aur jandaar rachna

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  21. दर्द को उकेर उन पलों को जिन्दा कर दिया जो आठ साल पहले उस लेबर रूम में छोड़ आई थी। खूब लिखा।

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  22. लग रहा है जी भर कर रो लूँ... 😢

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  23. रोंगटे खड़े हो गए

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  24. बढ़िया लिखा है...एक और कहानी पढ़ी थी हैडिंग पानियों के... समथिंग थी....ऐसी ही वेदना और दर्द का विवरण था...आपने बिलकुल सटीक लिखा है

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  25. बेहतरीन।..मुझे अपने बच्चों के जन्म में भी सहना पडा है पर मेरे परिवार ने मुझे बहुत सहयोग दिया।

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  26. पतनशील पन्नो की ये पहली ही दास्तान पढी है। शब्द गले मे ही घुटे जा रहे। ये पढकर मुझे अपनी ही कहानी एबार्शन कौध गयी। हो सके तो नीलिमा आप भी पढिये।शायद इस दर्द की अभिव्यक्ति वहां भी मिले। एक पुरुष की कलम से।

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  27. माँ , बताती है मेरे जन्म के समय उन्हें बहुत तकलीफ हुई थी शायद इसी वजह से हम लडकिया माँ के इतना करीब होती है । उस तकलीफ का इतना सजीव चित्रण करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका ।

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  28. कुछ कहा नहीं जाता ! बच्चों की पैदाइस के समय पत्नी की पीड़ा का साक्षी रहा--विवश भाव से छटपटाया, रोया,भगवान से प्रार्थना की, अपने पर गुस्साया, ग्लानि हुई, अपराधबोध हुआ ! आपकी लेखनी ने हर क्षण जीवन्त कर दिया !

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  29. कुछ कहा नहीं जाता ! बच्चों की पैदाइस के समय पत्नी की पीड़ा का साक्षी रहा--विवश भाव से छटपटाया, रोया,भगवान से प्रार्थना की, अपने पर गुस्साया, ग्लानि हुई, अपराधबोध हुआ ! आपकी लेखनी ने हर क्षण जीवन्त कर दिया !

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